Saturday 8 November 2014

जगत जननी माँ ज्वालादेवी ग्राम सोनपुर पाटन

ब्लॉ,देवेन्द्र कुमार शर्मा 
सुंदरनगर रायपुर छ, ग ,
खारून नदी के तट पर सोनपुर ग्राम बसा हुआ है। यहाँ के 2 शिवलिंग एवं जगत जननी माँ ज्वालादेवी की इस अंचल में काफी ख्याति है
छत्तीसगढ़ मातृ प्रधान प्रदेश है माता के नाम से पुत्र की पहचान भी इस प्रदेश की विशेषता है।,यहा गाँव -कस्बो से लेकर बड़े शहरो तक देवी माँ की विभिन्न नामो में मंदिर और उनमे स्थापित मुर्तिया मिलेगी।और छत्तीसगढ़ में अनेक शक्तिपीठ बने। यहाँ देवियाँ ग्रामदेवी और कुलदेवी के रूप में पूजित हुई। मुख्यतः माँ महामाया ,कंकलिन ,शीतला देवी ,स्थानीय नामो में अलग अलग नामो जैसे माँ बम्लेश्वरी ,चंडी ,बिलाई माता ,दंतेश्वरी ,अंगारमोती ,सती,सात बहनिया,धुमा देवी और जंगल पहाड़ की घाटीओ बंजर जगह में बंजारी माता आदि आदि के नामो से लोगो के जीवन में जगह बनायीं हुई है। गौरी गणेश की पूजा विभिन्न जातियों में दोस्ती को बदना बद कर रिश्ते दारी में तब्दील करना जश गीत ,रामायण को अलग तरह की शैली में पड़ने की परंपरा ,इस छेत्र की विशेषता है। दुर्ग जिले के पाटन ब्लॉक के रायपुर सीमा से लगा प्राचीन ग्राम तरीघाट से जहा की संस्कृती सिरपुर से भी प्राचीन माना जाता है ,से ही जुडी हुई ग्राम है

सोनपुर। पाटन से रायपुर मार्ग पर 4 किमी दूर खारून नदी के तट पर सोनपुर ग्राम बसा हुआ है। यहाँ के 2 शिवलिंग एवं ज्वालादेवी की इस अंचल में काफी ख्याति है।रायपुर से जगदलपुर राजमार्ग पर लगभग 101 किमी दूर अथवा धमतरी से 24 किमी की दूरी पर मरकाटोला ग्राम के दाहिनी औऱ फोरेस्ट बैरियर से ढाई किमी दूर ‘कंकालिन शक्ति-पीठ’ स्थित है। यह शक्ति-पीठ बियावान जंगल में एक पथरीली चट्टान पर है। शक्ति-पीठ की बाँयीं ओर उथला जल स्थान है। कंकालिन शक्ति-पीठ से एक नाला निकलता है, जो कंकालिन नाला के नाम से जाना जाता था।


 खारून नदी

लगभग 100 कि.मी. आगे नाले में एक पाताल फोड़ जल-स्रोत है, जहाँ बारह महीनों पानी प्रवाहित होता रहता है और यहाँ पानी का एक कुंड बन गया अपने उद्गम स्थल से 13 किमी. आगे चलकर कंकालिन नाला कुलिया ग्राम में पहुँचकर देवरानी-जेठानी नाला कहलाता है। कहा जाता है कि किसी देवरानी-जेठानी के रूप में दो स्त्रियाँ इस नाले में स्नान करते हुए डूब गई थीं और तभी से इस नाले को ‘देवरानी-जेठानी’ नाला कहा जाने लगा। कुलिया ग्राम से 25 किमी दूर किकिरमेटा ग्राम से 4 किमी पहले इस नाले में तर्री नाला का संगम हुआ है और तर्री नाला का उद्गम संगम से 28 किमी. दूर ग्राम बरपारा के जंगल से हुआ है। इन्हीं दो नालों की धारायें आगे चलकर 5 या 6 किमी दूर किकिरमेटा पहुँचती हैं और यहाँ नाले का नाम देवरानी-जेठानी नाला विलोपित होकर खारून नदी के रूप में परिवर्तित हो गया है।

आगे आते है तो नदी के दांए तट पर परसुलिडीह गाँव एवं बांए तट पर तरीघाट गाँव बसा है।



 परसुलिडीह से ही नदी के उस पार बड़े बड़े टीले दिखाई देने लगते हैं। इन टीलों पर अकोल के वृक्षों की भरमार है। इन टीलों की सतह पर काले और लाल मृदा भांड के अवशेष पाए जाते हैं।
जिससे सिद्ध होता है कि इस स्थान प्राचीन बसाहट रही होगी। यहाँ बसाहट के कई स्तर प्राप्त हुए हैं। प्रागैतिहासिक काल से लेकर मौर्य काल, शुंग काल, कुषाण काल एवं गुप्त काल तक के अवशेष प्राप्त हो रहे हैं। इससे यह तो तय है कि छत्तीसगढ़ में मल्हार के बाद पहली बार कहीं इतनी पुरानी सभ्यता के चिन्ह प्राप्त हो रहे हैं। ग्रामीणों ने यहाँ महामाया का मंदिर बना रखा है
नदी के किनारे यहाँ पर पहले कभी डाक यार्ड रहा होगा। तरीघाट में इन 4 टीलों के चारों तरफ़ पत्थर के परकोटे बने हुए हैं। जब यहाँ बसाहट थी तो ये परकोटे सुरक्षा घेरे का काम करते थे। उत्खनन के दौरान ज्ञात हुआ कि सभी घर पंक्तिबद्ध रुप से बसे थे और उनके बीच चौड़ी सड़क के साथ गलियाँ भी थी। कई घरों से रसोई प्राप्त हुई है, जहाँ चुल्हे की राख के साथ के मिट्टी के दैनिक उपयोग के बर्तन प्राप्त हुए हैं।
छत्तीसगढ़ की खारून नदी का भी अपना एक अलग सांस्कृतिक इतिहास है। वैसे देखा जाये तो ग्राम सोनपुर और लामकेनि गाव के बीच यहाँ खारून नदी का पाट काफी चौड़ा लगभग एक किमी चौड़ा है सोनपुर का एक शिवलिंग 5 फीट का है जो खारून नदी की मध्य धार में रेत के नीचे दबा हुआ मिला था। और दूसरा समीपस्थ बावड़ी में प्राप्त शिवलिंग साढ़े तीन फीट


ऊँचा है और यह ज्वालादेवी के मंदिर के मध्य एक बावड़ी से प्राप्त हुआ था दोनों शिवलिंगों के ऊपर का तिहाई भाग गोलाकार है और बाद का भाग चौकोर है। नवरात्रि के समय ज्वालामुखी के मंदिर के पास कुंड में देवी के जँवारों की पूजा अर्चना की जाती है। तत्पश्चात जँवारों को खारून नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। जहा की मूल संस्कृती हिमाचल प्रदेश ,उत्तरप्रदेश ,व् आसाम से आये लोगो से ही स्थापित है। क्युकी शायद ये पहला गाव है ,जहा की माँ ज्वाला देवी ,माँ गौरी कमाक्छ्या देवी के नाम से मुर्तिया मंदिर में स्थापित है। तथा यहाँ पर रहने वालो में इनके प्रति अत्यंत श्रद्धा है।यहा की माता जी की मूल मूर्ती मिट्टी से बनी हुई है ,और वो भी ग्राम सोनपुर   के  ही एक कुम्भकार परिवार के द्वारा ही निर्मित है।  बाबा गोरखनाथ ,व् मछंदरनाथ जी को भी मानने वाले जो की उड़ीसा ,आसाम से जुड़े हुए लोग भी रहते है ,मिट्टी के बर्तन इस गाव में बने मिट्टी के बर्तन की ख्याति भी दूर दूर तक है। इस पेशा से जुड़े लोग भी है। यह गाव भी पूर्व में स्थापित सभ्यता के अनुसार नदी के किनारे ही बसा हुआ है।हम लोग भी इसी नदी के आँचल में खेलते -कूदते हुए ही बड़े हुए है।इस गाव की और कई विशेषताए है पवित्र खारून नदी इस गाव की जीवनदायिनी है।खारून नदी दुर्ग व रायपुर जिलों की सीमा का निर्धारण करती है तथा अपने संगम स्थल पर यह बेमेतरा एवं बलौदा बाजार तहसीलों को भी एक दूसरे से विभाजित करती है।हिमाचल स्थित ज्वाला देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में सर्वोपरि माना जाता है. जब भगवान शिव माता सती को कंधे पर उठाकर इधर-उधर घूम रहे थे, तब माता का जिह्वा इसी स्थान पर गिर पड़ा था. कहते हैं मां शक्ति के इस मंदिर में 9 ज्वालाएं प्रज्वलित है, जो कि 9 देवियां महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विन्धयवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना देवी की स्वरुप हैं. मां ज्वाला देवी के मंदिर में अनवरत रूप से प्राकृतिक ज्वाला प्रज्वलित होती रहती है. मान्यता है कि जो मनुष्य सत्यनिष्ठा के साथ इस रहस्यमयी शक्तिपीठ आता है, उसकी कामना अवश्य ही पूर्ण होती है. एक प्रचलित दन्त कथा के अनुसार सतयुग में महाकाली के परमभक्त राजा भूमिचंद को देवी ने स्वप्न दिया और अपने पवित्र स्थान के बारे में बताया, तब राजा भूमिचंद स्वयं उस स्थान पर गए जहां उन्हें माता ज्वाला देवी की ज्वाला का दर्शन हुआ. तब उन्होंने वहां पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया और शाक-द्वीप से भोजक जाती के ब्राह्मणों को बुलाकर माता की पूजा के लिए नियुक्त किया. उन दोनों ब्राह्मण का नाम पंडित श्रीधर और पंडित कलापति था. कहते हैं उनके वंशज ही आज भी माता की पूजा करते हैं. नवरात्र के समय में यहां बहुत भीड़ रहती है परन्तु आस्थावान भक्त इस समय माता के दर्शन को अवश्य आते हैंहै शेष अगले भाग में ,,...जिसमे अनेको मनोरंजक व् नयी बाते आपको मिलेगी ?.  मेरे ब्लॉग jiwan ke aneko rang में 

छत्तीसगढ़ की प्राचीन संस्कृतिओ के साथ पड़ा जा सकता है शीघ्र ही माँ 

ज्वालादेवी ,खारून नदी के तट के प्रसिद्ध स्थल,छत्तीसगढ़ में टोनही प्रथा 
और भूत प्रेत पर कहानी पड़ना हो तो मेरे ब्लॉग में पढ़े. आप भी मैटर 

आपके नाम से प्रकाशित करने भेज सकते है ,मुझे। .....,,,,,,,,,,,,,,,,,,

जलती रहेगी गोरखनाथ के इंतजार में मां की ज्वाला 

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा है ज्वाला देवी का मंदिर। मां ज्वाला देवी तीर्थ स्थल को देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है। शक्तिपीठ वह स्थान कहलाते हैं जहां-जहां भगवान विष्णु के चक्र से कटकर माता सती के अंग गिरे थे। शास्त्रों के अनुसार ज्वाला देवी में सती की जिह्वा गिरी थी। मान्यता है कि सभी शक्तिपीठों में देवी हमेशा निवास करती हैं। शक्तिपीठ में माता की आराधना करने से माता जल्दी प्रसन्न होती है।

ज्वाला रूप में माता 

ज्वालादेवी मंदिर में सदियों से बिना तेल बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं। नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला जो चांदी के जाला के बीच स्थित है उसे महाकाली कहते हैं। अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी ज्वाला देवी मंदिर में निवास करती हैं।
 मां ज्वाला देवी शक्तिपीठ के
ज्वाला को बुझा न सका अकबर 
कथा है कि मुगल बादशाह अकबर ने ज्वाला देवी की शक्ति का अनादर किया और मां की तेजोमय ज्वाला को बुझाने का हर संभव प्रयास किया। लेकिन अकबर अपने प्रयास में असफल रहा। अकबर को जब ज्वाला देवी की शक्ति का आभास हुआ तो अपनी भूल की क्षमा मांगने के लिए अकबर ने ज्वाला देवी को सवामन सोने का छत्र चढ़ाया।

ज्वालादेवी की ज्योति 
ज्वाला माता से संबंधित गोरखनाथ की कथा इस क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है। कथा है कि भक्त गोरखनाथ यहां माता की आरधाना किया करता था। एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तब उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं। माता आग जलाकर बैठ गयी और गोरखनाथ भिक्षा मांगने चले गये।

इसी बीच समय परिवर्तन हुआ और कलियुग आ गया। भिक्षा मांगने गये गोरखनाथ लौटकर नहीं आये। तब ये माता अग्नि जलाकर गोरखनाथ का इंतजार कर रही हैं। मान्यता है कि सतयुग आने पर बाबा गोरखनाथ लौटकर आएंगे, तब-तक यह ज्वाला यूं ही जलती रहेगी।

गोरख डिब्बी
ज्वाला दवी शक्तिपीठ में माता की ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार देखने को मिलता है। मंदिर के पास ही 'गोरख डिब्बी' है। यहां एक कुण्ड में पानी खौलता हुआ प्रतीत होता जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है।





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