जगत जननी माँ ज्वालादेवी सोनपुर ग्राम पाटन छत्तीसगढ़

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ज्वाला देवी ग्राम सोनपुर पाटन मे खारून नदी के तट पर बसा हुआ ग्राम है मे प्राचीनकाल से स्थापित है। माँ ज्वालादेवी और यहाँ के दो प्राचीन शिव के मंदिर मे स्थापित तरीघाट खारून नदी सभ्यता के समय से निर्मित काफी प्राचीन शिव लिंग की व नज़दीक मे स्व निर्मित बावडी की इस अंचल में काफी ख्याति है वर्तमान मे११२३ ज्योति कलश स्थापितहै.


छत्तीसगढ़ मातृ प्रधान प्रदेश है माता के नाम से पुत्र की पहचान भी इस प्रदेश की विशेषता है।,यहा गाँव -कस्बो से लेकर बड़े शहरो तक देवी माँ की विभिन्न नामो में मंदिर और उनमे स्थापित मुर्तिया मिलेगी।

मुख्यतः माँ महामाया ,कंकलिन ,शीतला देवी ,काली देवी चंडी माँ और स्थानीय नामो में अलग अलग नामो मे भी जैसे माँ बम्लेश्वरी , ,बिलाई माता ,दंतेश्वरी अंगारमोती ,सती,सात बहनिया,धुमा देवी और जंगल पहाड़ की घाटीयो ,बंजर जगह में स्थापित बंजारी माता आदि आदि के नामो से लोगो के जीवन में जगह बनायीं हुई है। गौरा-गौरी गणेश की पूजा विभिन्न जातियों में दोस्ती को बदना बद कर रिश्ते दारी में तब्दील करना जश गीत ,रामायण को अलग तरह की शैली में पड़ने की परंपरा ,इस छेत्र की विशेषता है।तरीघाट , पाटन ब्लॉक दुर्ग जिले के रायपुर सीमा से लगा प्राचीन ग्राम जहा की संस्कृती 2500 वर्ष से भी प्राचीन माना जाता है ,सोनपुरसे ही लगा हुआ ग्राम है सोनपुर पाटन से रायपुर मार्ग पर 4 किमी दूर खारून नदी के तट पर बसा हुआ है। यहाँ के माँ ज्वालादेवी की इस अंचल में काफी ख्याति है।रायपुर की दिशा से आते है तो परसुलिडीह गाँव एवं बांए तट पर तरीघाट गाँव बसा है। जिसके बाद 01 km आगे सोनपुर ग्राम है तरीघाट गाँव मे बसाहट के कई स्तर प्राप्त हुए हैं। प्रागैतिहासिक काल से लेकरमौर्य काल, शुंग काल, कुषाण काल एवं गुप्त काल तक के अवशेष प्राप्त हो रहे हैं। इससे यह तो तय है कि छत्तीसगढ़ में मल्हार के बाद पहली बार कहीं इतनी पुरानी सभ्यता के चिन्ह प्राप्त हो रहे हैं। यहाँ भी माँ महामाया का मंदिर बना हुआ है,जिसमे स्थापित मूर्ति भी अत्यंत प्राचीनहै.नदी के किनारे यहाँ पर 4 टीलों के चारों तरफ़ पत्थर के परकोटे बने हुए हैं। जब यहाँ बसाहट थी तो ये परकोटे सुरक्षा घेरे का काम करते थे। उत्खनन के दौरान ज्ञात हुआ कि सभी घर पंक्तिबद्ध रुप से बसे थे और उनके बीच चौड़ी सड़क के साथ गलियाँ भी थी। कई घरों से रसोई प्राप्त हुई है, जहाँ चुल्हे की राख के साथ के मिट्टी के दैनिक उपयोग के बर्तन प्राप्त हुए हैं।


ग्राम सोनपुर के पास खारून नदी का पाट काफी चौड़ा सोनपुर का एक शिवलिंग 5 फीट का है जो खारून नदी की मध्य धार में रेत के नीचे दबा हुआ मिला था।
और दूसरा समीपस्थ बावड़ी में प्राप्त शिवलिंग साढ़े तीन फीट ऊँचा है और यह ज्वालादेवी के मंदिर के मध्य एक बावड़ी से प्राप्त हुआ था दोनों शिवलिंगों के ऊपर का तिहाई भाग गोलाकार है और बाद का भाग चौकोर है। नवरात्रि के समय ज्वालामुखी के मंदिर के पास कुंड में देवी के जँवारों की पूजा अर्चना की जाती है। तत्पश्चात जँवारों को खारून नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।

जहा की मूल संस्कृती हिमाचल प्रदेश ,उत्तरप्रदेश ,व् आसाम से आये लोगो से ही स्थापित है। क्युकी शायद ये पहला गाव है ,जहा की माँ ज्वाला देवी ,माँ गौरी कमाक्छ्या देवी के नाम से मुर्तिया मंदिर में स्थापित की गई है। तथा आसपास मे रहने वालो में इनके प्रति अत्यंत श्रद्धा है।यहा की माता ज्वाला जी की मूल मूर्ती मिट्टी से बनी हुई है ,और वो भी ग्राम सोनपुर के ही एक कुम्भकार परिवार के द्वारा ही प्राचीनकाल मे निर्मित है। बाबा गोरखनाथ ,व् मछंदरनाथ जी को भी मानने वाले परिवार जो की उड़ीसा ,आसाम से जुड़े हुए लोग भी रहते है ,मिट्टी के बर्तन इस गाव में बने मिट्टी के बर्तन की ख्याति भी दूर दूर तक है। इस पेशा से जुड़े लोग भी है। यह गाव भी पूर्व में स्थापित सभ्यता के अनुसार नदी के किनारे ही बसा हुआ है। पवित्र खारून नदी इस गाव की जीवनदायिनी है।
हिमाचल प्रदेशमे स्थित ज्वाला देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में सर्वोपरि माना जाता है. जब भगवान शिव माता सती को कंधे पर उठाकर इधर-उधर घूम रहे थे, तब माता का जिह्वा इसी स्थान पर गिर पड़ा था. कहते हैं मां शक्ति के इस मंदिर में 9 ज्वालाएं प्रज्वलित है, जो कि 9 देवियां महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विन्धयवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना देवी की स्वरुप हैं. मां ज्वाला देवी के मंदिर में अनवरत रूप से प्राकृतिक ज्वाला प्रज्वलित होती रहती है. मान्यता है कि जो मनुष्य सत्यनिष्ठा के साथ इस रहस्यमयी शक्तिपीठ आता है, उसकी कामना अवश्य ही पूर्ण होती है.
नवरात्र के समय में ज्वालादेवी ग्राम सोनपुर के मंदिर मे बहुत भीड़ रहती है दूर रहने वाले आस्थावान भक्त इस समय माता के दर्शन को अवश्य आते हैं
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