अमरकण्टक मेरी यादो में से
देवेंद्र कुमार शर्मा सुंदरनगर रायपुर छ। ग अमरकण्टक मध्य प्रदेस के अनूपपुर जिले में आता हैं। यह जिला डिण्डोरी म.प, और छत्तीसगढ राज्य के बिलासपुर जिले के पेण्ड्रा रोड नामक रेलवे स्टेशन से भी उतर कर जाया जा सकता है।
पेण्ड्रा से बस के रास्ते में केवची नमक गाव से होते हुए भी जंगल पहाड़ के बीच घाट वाले रस्ते से चढ़ते हुये भी पंहुचा जा सकता है।
वर्ष 85 में पहली बार मै मुंगेली से तखतपुर और वहा से करगीखुर्द की और मूड़ कर अचानकमार जंगल में से होते हुये छपरवा विश्रामगृह तक पहुंचे थे। फिर वहा में कुछ देर आराम कर आगे बढ़े थे। इसके बाद २,3 बार और वहा जाने का अवसर तो प्राप्त हुआ है। किन्तु अब वहा कि प्राकृतिक छबि को और पेड़ -पौधे जीव जन्तुओ का नाश होते देख दुःख होता है।
छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद अब अचानकमार एरिया को रिजर्व फ़ारेस्ट में परिवर्तित कर दिया गया है। अमरकंटक में मंदिरो की भरमार और पक्के निर्माण कार्यो ने नर्मदा जी के उद्गम स्थल कुण्ड को और माई की बगीया स्थल की गुले बगावली , बूटी ,केवड़े के पौधो को काफी नुकसान पहुचाया है। अमरकंटक में नर्मदा जी के मंदिर ,सोनमुड़ा सोन , जोहुला नदी के उद्गम स्थल कपिलधारा जलप्रपात ,दूधधारा जलप्रपात ,कबीर चबूतरा ,व् विभिन्न आश्रम ही पहले देखने योग्य जगह थे।
नर्मदा जी विश्व की सर्वाधिक प्राचीन नदियों में से एक और हमारे देश की सबसे प्राचीन प्रमुख नदी है । आज जहाँ नर्मदा घाटी है कभी यहाँ तक अरब सागर का विस्तार था और यही वो स्थान हैं जहाँ करोड़ों वर्ष पूर्व अफ्रीका महाद्वीप से टूटा हुआ हिस्सा भारत से आकर जुड़ गया। कपिलधारा जल प्रपात -
नर्मदा अपने छोटे से उद्गम कुण्ड से यात्रा आरम्भ करती है और जो धारा कपिलधारा तक जाती है उसका विस्तार बहुत ही कम है परन्तु सौंदर्य अद्भुत है ।
नर्मदा के उद्गम स्थान से लगभग 6 किलोमीटर दूर ये जलप्रपात स्थित है । कहा जाता है कि कभी यहीं अमरकंटक नगरी थी । यहां नर्मदा 100 फुट गहरे खड्ड में गिरती है । दुर्गम चट्टानों से होकर एक मार्ग भी प्रपात के निचले हिस्से तक जाता है । नर्मदा अपने छोटे से उद्गम कुण्ड से यात्रा आरम्भ करती है और जो धारा कपिलधारा तक जाती है उसका विस्तार बहुत ही कम है परन्तु सौंदर्य अद्भुत है । पहाड़ के नीचे उतरकर हि इसके संपूर्ण दर्शन किये जा सकते हैं । नीचे पानी के गिरने के स्थान पर एक खोह है जहां जल प्रपात के पीछे तक भी जाया जा सकता है ।जल प्रपात की ध्वनि पूरी घाटी में गुंजायमान होती है । कुछ दूर चलकर ही दुग्धधारा नामक स्थान है। यहा पर गिरने वाली धारा सफ़ेद दूध जैसी दिखती है। यहा पर स्नान से शरीर की अच्छी मालिश भी हो जाती हैं। यहां पर नर्मदा की पतली जलधारा दुर्गम पहाड़ियों और वनों में खो सी जाती है । व यहां का प्राकृतिक सौंदर्य मन को लुभाता है ।मुझे उसी समय की याद है जब हम लोग कपिलधारा स्थल से ऊपर से नीचे की और जाने लगे तभी कुछ लोगो की आवाज़ कानो में सुनाई पड़ी , रुको ,आगे मत जाओ ,हमने पूछा क्या हुआ। तभी हमने देखा कि कई लोग आँखों ,होठो ,चेहरा सूजे हुए लोग हमारी ओर दर्द से कराहते बढ़ते चले आ रहे हैं। हम लोग समझ गये कि उनपर मधुमक्खीयो का हमला हुआ है। वे लोग बसो में बैठकर बिलासपुर रेलवे कॉलोनी से पिकनिक मनाने आये हुये थे ,कपिलधारा जलप्रपात के ऊपर बड़े -बड़े मधुमक्खियों के डेरा था। किसी ने शरारत से उनपर पत्थर फेक दिया था ,जिससे की वे बिफर गए थे। और इनके कोपभाजन का सबसे अधिक शिकार एक सिगरेट पीने वाला व्यक्ति शुरू में बना। वह व्यक्ति इतना अधिक घायल था की उसे जैसे तैसे सहारे से ऊपर सुरक्षित जगह में ले जाया गया था। हम लोग बच्चो सहित रुक गये। और जब वीरानी सी छा गई तो नीचे सावधानी पूर्वक उतर कर दूधधारा की ओर जंगल के रास्ते से बढे। उन पर्यटकों में से अधिकांश बंगाली परिवार से थे में से जो जो कि पहले उपर चढ़ गये थे ,वे हि सुरक्षित थे। नही तो सभी को मधु मक्खियों ने अच्छा प्रसाद दिया था।
नर्मदा अपने छोटे से उद्गम कुण्ड से यात्रा आरम्भ करती है और जो धारा कपिलधारा तक जाती है उसका विस्तार बहुत ही कम है परन्तु सौंदर्य अद्भुत है ।
नर्मदा के उद्गम स्थान से लगभग 6 किलोमीटर दूर ये जलप्रपात स्थित है । कहा जाता है कि कभी यहीं अमरकंटक नगरी थी । यहां नर्मदा 100 फुट गहरे खड्ड में गिरती है । दुर्गम चट्टानों से होकर एक मार्ग भी प्रपात के निचले हिस्से तक जाता है । नर्मदा अपने छोटे से उद्गम कुण्ड से यात्रा आरम्भ करती है और जो धारा कपिलधारा तक जाती है उसका विस्तार बहुत ही कम है परन्तु सौंदर्य अद्भुत है । पहाड़ के नीचे उतरकर हि इसके संपूर्ण दर्शन किये जा सकते हैं । नीचे पानी के गिरने के स्थान पर एक खोह है जहां जल प्रपात के पीछे तक भी जाया जा सकता है ।जल प्रपात की ध्वनि पूरी घाटी में गुंजायमान होती है । कुछ दूर चलकर ही दुग्धधारा नामक स्थान है। यहा पर गिरने वाली धारा सफ़ेद दूध जैसी दिखती है। यहा पर स्नान से शरीर की अच्छी मालिश भी हो जाती हैं। यहां पर नर्मदा की पतली जलधारा दुर्गम पहाड़ियों और वनों में खो सी जाती है । व यहां का प्राकृतिक सौंदर्य मन को लुभाता है ।मुझे उसी समय की याद है जब हम लोग कपिलधारा स्थल से ऊपर से नीचे की और जाने लगे तभी कुछ लोगो की आवाज़ कानो में सुनाई पड़ी , रुको ,आगे मत जाओ ,हमने पूछा क्या हुआ। तभी हमने देखा कि कई लोग आँखों ,होठो ,चेहरा सूजे हुए लोग हमारी ओर दर्द से कराहते बढ़ते चले आ रहे हैं। हम लोग समझ गये कि उनपर मधुमक्खीयो का हमला हुआ है। वे लोग बसो में बैठकर बिलासपुर रेलवे कॉलोनी से पिकनिक मनाने आये हुये थे ,कपिलधारा जलप्रपात के ऊपर बड़े -बड़े मधुमक्खियों के डेरा था। किसी ने शरारत से उनपर पत्थर फेक दिया था ,जिससे की वे बिफर गए थे। और इनके कोपभाजन का सबसे अधिक शिकार एक सिगरेट पीने वाला व्यक्ति शुरू में बना। वह व्यक्ति इतना अधिक घायल था की उसे जैसे तैसे सहारे से ऊपर सुरक्षित जगह में ले जाया गया था। हम लोग बच्चो सहित रुक गये। और जब वीरानी सी छा गई तो नीचे सावधानी पूर्वक उतर कर दूधधारा की ओर जंगल के रास्ते से बढे। उन पर्यटकों में से अधिकांश बंगाली परिवार से थे में से जो जो कि पहले उपर चढ़ गये थे ,वे हि सुरक्षित थे। नही तो सभी को मधु मक्खियों ने अच्छा प्रसाद दिया था।
दूधधारा जल प्रपात
दूधधारा- अमरकंटक में दूधधारा नाम का यह झरना काफी लोकप्रिय है। ऊंचाई से गिरते इसे झरने का जल दूध के समान प्रतीत होता है इसीलिए इसे दूधधारा के नाम से जाना जाता है।,कपिलधारा जलप्रपात से नदी के किनारे किनारे के रास्ते होते हुये पत्थरो के ऊपर कूदफाँद करते हुये ह्म लोग दूधधारा जलप्रपात तक पहुंच कर उस रमणीय स्थल में स्नान ध्यान में लग गये। और स्नान ख़त्म कर बॉस के बने मचान नुमा सीढ़ी से ऊपर चढ़े तो अचानक हमारी नज़र एक छोटी सी गुफा और उसके ऊपर लिखे दुर्वासा मुनि जी के आश्रम वाली बोर्ड पर पड़ी। और धर्मग्रंथो में उनके सम्बन्ध में लिखे किस्से कहानिओं को याद कर आतंकित होकर उनकी मूर्ति से छमा याचना कर आगे बढे। यहाँ पर पाये जाने वाले कीट , फंगस ,फ़र्न और अन्य जड़ी बूटीआ अन्य जगह की अपेक्छा बहुत अच्छी तरह से विकसित दिखी।
दूधधारा- अमरकंटक में दूधधारा नाम का यह झरना काफी लोकप्रिय है। ऊंचाई से गिरते इसे झरने का जल दूध के समान प्रतीत होता है इसीलिए इसे दूधधारा के नाम से जाना जाता है।,कपिलधारा जलप्रपात से नदी के किनारे किनारे के रास्ते होते हुये पत्थरो के ऊपर कूदफाँद करते हुये ह्म लोग दूधधारा जलप्रपात तक पहुंच कर उस रमणीय स्थल में स्नान ध्यान में लग गये। और स्नान ख़त्म कर बॉस के बने मचान नुमा सीढ़ी से ऊपर चढ़े तो अचानक हमारी नज़र एक छोटी सी गुफा और उसके ऊपर लिखे दुर्वासा मुनि जी के आश्रम वाली बोर्ड पर पड़ी। और धर्मग्रंथो में उनके सम्बन्ध में लिखे किस्से कहानिओं को याद कर आतंकित होकर उनकी मूर्ति से छमा याचना कर आगे बढे। यहाँ पर पाये जाने वाले कीट , फंगस ,फ़र्न और अन्य जड़ी बूटीआ अन्य जगह की अपेक्छा बहुत अच्छी तरह से विकसित दिखी।
सिर कटी हुई गजसवार
नर्मदा मंदिर समूह और उद्गम के मध्य पाषाण निर्मित सिर कटी हुई गजसवार की मूर्ती ,अश्व सवार ,सती प्रथा सूचक अनेको मुर्तिया स्थापित है। हाथी की 4 पैर वाली प्रतिमा के साथ आसपास के पुजारी -पण्डो ने लोगो को भ्रमित कर दान दक्षिणा ऐंठने का अच्छा माध्यम खोज लिया है।
जब हम लोग वह पहुंचे तो क्या देखते है की बिलासपुर से आये उन बंगाली परिवार में से एक के पुत्री और पत्नी हाथी के पैरो के बीच से निकल कर पंडित को पैसे देकर धर्मात्मा घोषित हो चुके है। और अब वे तथा पंडित अपने मोटे से शरीर के पतिदेव को हाथी प्रतिमा के पैरो के बीच से निकल कर धर्मात्मा और ,किस्मतवाला कहलाने उकसा रहे थे।पंडितअलग उकसा रहा था , ताकि उनकी दान दक्षिणा इन पुण्यात्माओं से प्राप्त हो सके। गज प्रतिमा के साथ किंवदन्ति जुड़ी हुई है कि इसके पैरो में मध्य से सिर्फ़ धर्मात्मा ही निकल सकता है चाहे वह कितना ही मोटा हो। अगर कोई पापी रहे तो पतला भी इसमें फ़ंस जाता है। बस क्या था वो मोटा आदमी पैरो के नीचे घुस तो गया किंतु बाहर नही निकल पा रहा था। ब्लड प्रेशर का शिकार भी था। परेशान होकर उसने हाथपैर डाल रखें थे। पत्नि और पुत्री रो रही थी। उकसा रहे लोग गायब हो चुके थे। बिचारे तमासबीनो क मुफ्त मनोरन्जन करते हलाकान थे। फिर लोगो की सलाह पर साबुन घोळ कर उड़ेले गये ,तभी वहा के कुछ पुराने व्यक्ति आ गये ,जिन्होंने उन्हें हिम्मत बंधा कर गाइड किया ,और वो ले- देकर जैसे तैसे बाहर निकल ही आये। किन्तु इस दौरान उनके हाथ पैर पाकर करखिचने पत्नी और पुत्री के द्वारा की कोशिस में पीठ छिल भी चूका था। वास्तविकता में वहाँ से निकलने की टेकनिक है। वह व्यक्ती मोटा होने से उसका पेट हाथी के पैरोँ के बीच फस गया था। कुछ लोग भय से ही हाथी के प्रतिमा की पैरों से निकलने का प्रयास हि नहीं करते। यद्यपि मै दुबला हु ,किन्तु पता क्यों इस तरह की बात में विश्वास नही है ,और ऊपर वाली घटना भी एक कारण हो सकता है।
जब हम लोग वह पहुंचे तो क्या देखते है की बिलासपुर से आये उन बंगाली परिवार में से एक के पुत्री और पत्नी हाथी के पैरो के बीच से निकल कर पंडित को पैसे देकर धर्मात्मा घोषित हो चुके है। और अब वे तथा पंडित अपने मोटे से शरीर के पतिदेव को हाथी प्रतिमा के पैरो के बीच से निकल कर धर्मात्मा और ,किस्मतवाला कहलाने उकसा रहे थे।पंडितअलग उकसा रहा था , ताकि उनकी दान दक्षिणा इन पुण्यात्माओं से प्राप्त हो सके। गज प्रतिमा के साथ किंवदन्ति जुड़ी हुई है कि इसके पैरो में मध्य से सिर्फ़ धर्मात्मा ही निकल सकता है चाहे वह कितना ही मोटा हो। अगर कोई पापी रहे तो पतला भी इसमें फ़ंस जाता है। बस क्या था वो मोटा आदमी पैरो के नीचे घुस तो गया किंतु बाहर नही निकल पा रहा था। ब्लड प्रेशर का शिकार भी था। परेशान होकर उसने हाथपैर डाल रखें थे। पत्नि और पुत्री रो रही थी। उकसा रहे लोग गायब हो चुके थे। बिचारे तमासबीनो क मुफ्त मनोरन्जन करते हलाकान थे। फिर लोगो की सलाह पर साबुन घोळ कर उड़ेले गये ,तभी वहा के कुछ पुराने व्यक्ति आ गये ,जिन्होंने उन्हें हिम्मत बंधा कर गाइड किया ,और वो ले- देकर जैसे तैसे बाहर निकल ही आये। किन्तु इस दौरान उनके हाथ पैर पाकर करखिचने पत्नी और पुत्री के द्वारा की कोशिस में पीठ छिल भी चूका था। वास्तविकता में वहाँ से निकलने की टेकनिक है। वह व्यक्ती मोटा होने से उसका पेट हाथी के पैरोँ के बीच फस गया था। कुछ लोग भय से ही हाथी के प्रतिमा की पैरों से निकलने का प्रयास हि नहीं करते। यद्यपि मै दुबला हु ,किन्तु पता क्यों इस तरह की बात में विश्वास नही है ,और ऊपर वाली घटना भी एक कारण हो सकता है।
सोन मुडा – यह सोन नदी का उद्गम माना जाता है । अममरकंटक पर्वत से सोन की पतली धारा एक दलदली प्रदेश से निकलकर वनखंडी में अदृश्य हो जाती है । सोन नदी का वर्णन आर्यों औऱ मेगस्थनीज ने “ हिरण्याह “ नाम से किया है । इसकी जलधारा में सोने के कण मिलने के कारण ही इसका नाम सोन पड़ने की भी किवदंती है । सोन का उल्लेख ब्रम्हपुराण, बाल्मिकी रामायण औऱ भागवत में भी मिलता है । एक जनश्रुति के अनुसार सोन का विवाह नर्मदा से निश्चित हुआ था किंतु नर्मदा को किसी अन्य स्त्री के साथ सोन के प्रेम संबंध का पता चल गया और उसने विवाह करने से इंकार कर दिया औऱ फिर वह विपरीत दिशा में प्रवाहमयी हो गईहै।
मां की बगिया- मां की बगिया माता नर्मदा को समर्पित है। कहा जाता है कि इस हरी-भरी बगिया से स्थान से शिव की पुत्री नर्मदा पुष्पों को चुनती थी। यहां प्राकृतिक रूप से आम,केले और अन्य बहुत से फलों के पेड़ उगे हुए हैं। साथ ही गुलबाकावली और गुलाब के सुंदर पौधे यहां की सुंदरता में बढोतरी करती हैं। यह बगिया नर्मदाकुंड से एक किमी. की दूरी पर है।