माँ बमलेश्वरी मंदिर डोंगरगढ़
देवेंद्रकुमारशर्मा,सुन्दरनगर,रायपुर,छत्तीसगढ़
डोंगरगढ़ भिलाई, दुर्ग और राजनांदगांव के रास्ते से होते हुये रायपुर से 107 किलोमीटर की दूरी पर है। कोलकाता-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग से पच्चीस किलोमीटर आगे से दाये ओर एक संकीर्ण घुमावदार एकल सड़क पर हरे भरे वनस्पति और हल्के जंगलों से होते हुये वाहन जाता है। सीधे रेल के रास्ते से भी अनेकों ट्रैन के माध्यम से भी पहुँचा जा सकता हैं। डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन जंक्शन की श्रेणी में आता है। यहां सुपर फास्ट ट्रेनों को छोड़कर सारी गाडियां रूकती हैं, लेकिन नवरात्रि में सुपर फास्ट ट्रेनें भी डोंगरगढ़ में रूकती है। अपनी निज़ी गाड़ी में रायपुर से डोंगरगढ़ तक 03 घण्टे में आराम से भी पहुँचा जाया जा सकता हैं ।दुर्ग शहर से नागपुर जैन टेम्पल के रास्ते बडाईटोला ढारा क़स्बा से होते हुए भी जा सकते है। डोंगरगढ़ राजनांदगांव ज़िले मुख्यालय में एक तहसील मुख्यालय है। यहा पर मुख्य रूप से दो मन्दिर से हि इस क़स्बे की प्रसिद्धता हैं। एक पहाड़ी की चोटी के उपर पर एक 1600 feet. की उचाई पर है बड़ी बमलेश्वरी
जो कि मुख्य पर्यटन के केन्द्र हैं। साथ-साथ मुख्य बमलेश्वरी मंदिर पहाड़ी के नीचे समतल मैदान में एक और , छोटी माँ बमलेश्वरी मंदिर 1 /2 किमी में जमीं सतह से थोड़े उचे में स्थित हैं । ये मंदिर नए रूप में निर्माणाधीन है। आज इस जगह ने एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल का रूप ले लिया है। समीप ही मेला स्थल है। मुख्य मंदिर परिसर में और इन मंदिरों में (Dashera के पूर्व ) कंवार की नवरात्रि और चैत्र (रामनवमी के दौरान) ग्रीष्म ऋतू के प्रारम्भ के दौरान मंदिर की और झुंड के झुंड में लोग पैदल अन्य वाहन ,रेल मार्ग से छत्तीसगढ़ ,महाराष्ट्र ,मध्यप्रदेश ,ओड़िसा की और से व् अन्य राज्यो से भी आसपास के लाखो तीर्थयात्रियों लोग यहाँ पहुँचते ही है। प्रतिदिन भी लोग आते जाते रहते है। मंदिर ही एक मात्र कसबे का केंद्र बिंदु औरआकर्षण का केंद्र हैं। इस तरह छत्तीसगढ़ में धार्मिक पर्यटन का सबसे बड़ा केन्द्र पुरातन कामाख्या नगरी है जो पहाड़ों से घिरे होने के कारण पहले डोंगरी और अब डोंगरगढ़ के नाम से जाना जाता है। यहां ऊंची चोटी पर विराजित बगलामुखी मां बम्लेश्वरी देवी का मंदिर छत्तीसगढ़ ही नहीं देश भर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है। सन 1964 में खैरागढ़ रियासत के भूतपूर्व नरेश श्री राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने एक ट्रस्ट की स्थापना कर मंदिर का संचालन ट्रस्ट को सौंप दिया था।
मन्दिर मे ऊपर जाने के दो तरीके हैं। 1600 फुट की ऊंचाई में 1100 कदम -कदम चढ़ाई सीढ़ी मार्ग से चढ़ कर या रज्जु मार्ग ( रोपवे ट्रॉली ) से ऊपर जाने के रास्ते हैं। व् पहले पैदल भी दो रास्ते थे ऊपर जाने के सीढ़ी के अलावा एक दुर्गम पहाड़ चट्टान में कूद फांद कर भी जिसके द्वारा भी वर्ष ८० -८१ में हम लोग जैसे तैसे नीचे की मंदिर की पीछे के मार्ग से चडे थे। शायद इसे अब बन्द भी कर दिया गया है। वैसे डोंगर का मतलब पहाड़ है जबकि गढ़ का मतलब किले से है।इतिहासकारों और विद्वानों ने इस क्षेत्र को कल्चूरी काल का पाया है लेकिन अन्य उपलब्ध सामग्री जैसे जैन मूर्तियां भी यहां मिल चुकी हैं,सूक्ष्म मीमांसा करने पर इस क्षेत्र की मूर्ति कला पर गोंड कला का प्रमाण परिलक्षित हुआ है।
रोपवे गाड़ी से नीचे चढ़ते व् उतरते समय दूर- दूर तक का विहंगम दृश्य दिखलाई पड़ता हैं। यह कम से कम पांच मिनट की सवारी है। और इस दौरान हमे मंदिर की तरफ उपर फहराता हुआ ध्वज और त्रिशूल दिखने से तथा नीचे 1000 फीट गहरी खाई की ओर नज़र डालने से एक अनोखी खुशी के साथ साथ भय भी उत्पन्न करता है। मंदिर के नीचे छीरपानी जलाशय है जहां यात्रियों के लिए बोटिंग की व्यवस्था भी है।सीढ़ियों के रास्ते भी मंदिर के परिसर तक ऊपर पहुचने में हमें कठिन और सरळ चढ़ाई रास्ता दोनों हि मिलता हैं । और आप चाहे कितने भी थके हुए क्यू न हो ऊपर मंदिर के प्राँगण में पहुँचते हि शीतल हवा आपकी थकान उतार हि देगी। और एक नई ऊर्जा से आप ओत -प्रोत हो जायेंगे।
रोपवे सोमवार से शनिवार तक सुबह आठ से दोपहर दो और फिर अपरान्ह तीन से शाम पौने सात तक चालू रहता है। रविवार को सुबह सात बजे से रात सात बजे तक चालू रहता है। नवरात्रि के मौके पर चौबीसों घंटे रोपवे की सुविधा रहती है।00 बुजुर्ग यात्रियों के लिए कहारों की भी व्यवस्था पहले थी पर रोपवे हो जाने के बाद कहार कम ही हैं।
किन्तु ऊपर चढ़ाई के पहुँचने के रास्ते में पीने के पानी ,छाया तथा पुरे रास्ते दुकाने सभी तरह की मिलेगी। यात्रियों के लिए रियायती दर पर भोजन की व्यवस्था भी रहती है। ये अच्छी बात है क़ि इस मन्दिर में हर मौसम में आराम के लिहाज़ से बनाये गये विश्रामगृह हैं। ह रास्ते में बन्दरो से आपको सावधान रहने की आवश्यक्ता है। पर्यटक इन्हे खाने पीने की चीज़ देकर इनकी आदत बिगाड़ चुके हैं। और ये पर्स ,थैली आदि छीन कर भी भाग जाते है। क्यूकि इनके शिकार एक बार हमलोग भी हो चुके है।
मन्दिर के आसपास के प्राकृतिक पहाड़ियों वर्णन से परे सुंदर दिखता है। और सीधी रेलवे ट्रैक जो मैदानों पर दूर तक फैला है, मन्दिर के नीचे की और देखने पर एक आश्चर्यजनक परिदृश्य उत्पन्न करता है। मैंने डोंगरगढ़ शहर में मनभावन हरियाली की कमी को महसूस किया हु । नगरवासियो को कम से कम बरगद , पीपल या आम आदि के पेड़ लगा कर इस कमी को जरूर दूर करना चाहिए। ये तो अच्छी ही बात है की
आसपास के पहाड़ों चट्टानों व् झील के नज़ारे अप्रत्याशित कल्पना के लिए कारण प्रदान करते हैं। और बरसात के दिनों में एक अलग ही नज़ारे पैदा करते है। साथ ही दूर तक फैले चट्टानें ,पत्थरो का ढेर भी अनेको कल्पना का केंद्र बनते है। ,,,,,, ये रॉक संरचनाये मुझे तो हमेशा अजीब सा भ्रम प्रदान करते हैं। और जब भी वहा जाता हुँ तो ये कल्पनाओं की दूनिया में मुझे ले जाते है।इसी तरह की दृश्य भानुप्रतापपुर से कांकेर तक की बस मार्ग में भी देखने को मिलता है।
किंवदंती है कि,एक स्थानीय राजा Veersen, निःसंतान था और कहा कि हो जाता है। और अपने शाही पुजारियों के सुझावों से देवताओं को पूजा कर विशेष रूप से शिव पारवती जी की करके मनौती मानी । एक साल के भीतर, रानी वे Madansen नाम एक पुत्र को जन्म दिया। राजा Veersen ने इसे भगवान शिव और पार्वती की एक वरदान मान उनकी सम्मान में मंदिर बनवाया । और मां Bamleshwari देवी का यह मंदिर जाहिर वर्षों में महान आध्यात्मिक महत्व प्राप्त कर ली है।डोंगरगढ़ के बारे में अनेको कहानी लिखी गई है। जो की नेट में उपलब्ध है।अतः इस प र मै ज्यादा लिखना उचित नही समझता। वैसे राजा विक्रमादित्य से लेकर खैरागढ़ रियासत तक के कालपृष्ठों में मां बम्लेश्वरी की महिमा गाथा मिलती है।
डोंगरगढ़ की पहाड़ियों की प्राकृतिकता , कृत्रिम निर्माण कर समाप्त किया जा रहा है. साथ ही पहाड़ी और आसपास की जगह पर कचरो का ढेर फैलता जा रहा है। जिसे की रोकने जान-जागरूकता आवश्यक है। तथा चारो तरफ की पहाड़ी की आकार ,व् खुबसूरती बिगाड़ने में लगे है जिस पर शासन को अंकुश करना चाहिए ,नही तो वो दिन दूर नही रहेगा जबकि सिर्फ चारो और पक्के भवन और गन्दगी ही नज़र आये।
यहा पर अन्य देखने योग्य स्थान निम्न है -
कार्यदिवस पर - 04:00-12:00
13:00-22:30
शनिवार और रविवार को - 5:00-10:00
कैसे पहुँचें
डोंगरगढ़ जिला मुख्यालय राजनांदगांव से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और अच्छी तरह से राजनांदगांव से बसों के साथ जुड़ा हुआ है। डोंगरगढ़ भी अच्छी तरह से रेल गाड़ियों के साथ जुड़ा हुआ है। यह नागपुर से 170 किलोमीटर और रायपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर मुंबई-हावड़ा मुख्य लाइन पर है। निकटतम हवाई अड्डा माना (रायपुर) में है।
मौसम यात्रा करने के लिए
डोंगरगढ़ साल भर बाहर से भी आकर दौरा किया जा सकता है।
(चित्र साभार गूगल से व् अन्य मित्रो से )
देवेंद्रकुमारशर्मा,सुन्दरनगर,रायपुर,छत्तीसगढ़
डोंगरगढ़ भिलाई, दुर्ग और राजनांदगांव के रास्ते से होते हुये रायपुर से 107 किलोमीटर की दूरी पर है। कोलकाता-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग से पच्चीस किलोमीटर आगे से दाये ओर एक संकीर्ण घुमावदार एकल सड़क पर हरे भरे वनस्पति और हल्के जंगलों से होते हुये वाहन जाता है। सीधे रेल के रास्ते से भी अनेकों ट्रैन के माध्यम से भी पहुँचा जा सकता हैं। डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन जंक्शन की श्रेणी में आता है। यहां सुपर फास्ट ट्रेनों को छोड़कर सारी गाडियां रूकती हैं, लेकिन नवरात्रि में सुपर फास्ट ट्रेनें भी डोंगरगढ़ में रूकती है। अपनी निज़ी गाड़ी में रायपुर से डोंगरगढ़ तक 03 घण्टे में आराम से भी पहुँचा जाया जा सकता हैं ।दुर्ग शहर से नागपुर जैन टेम्पल के रास्ते बडाईटोला ढारा क़स्बा से होते हुए भी जा सकते है। डोंगरगढ़ राजनांदगांव ज़िले मुख्यालय में एक तहसील मुख्यालय है। यहा पर मुख्य रूप से दो मन्दिर से हि इस क़स्बे की प्रसिद्धता हैं। एक पहाड़ी की चोटी के उपर पर एक 1600 feet. की उचाई पर है बड़ी बमलेश्वरी
जो कि मुख्य पर्यटन के केन्द्र हैं। साथ-साथ मुख्य बमलेश्वरी मंदिर पहाड़ी के नीचे समतल मैदान में एक और , छोटी माँ बमलेश्वरी मंदिर 1 /2 किमी में जमीं सतह से थोड़े उचे में स्थित हैं । ये मंदिर नए रूप में निर्माणाधीन है। आज इस जगह ने एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल का रूप ले लिया है। समीप ही मेला स्थल है। मुख्य मंदिर परिसर में और इन मंदिरों में (Dashera के पूर्व ) कंवार की नवरात्रि और चैत्र (रामनवमी के दौरान) ग्रीष्म ऋतू के प्रारम्भ के दौरान मंदिर की और झुंड के झुंड में लोग पैदल अन्य वाहन ,रेल मार्ग से छत्तीसगढ़ ,महाराष्ट्र ,मध्यप्रदेश ,ओड़िसा की और से व् अन्य राज्यो से भी आसपास के लाखो तीर्थयात्रियों लोग यहाँ पहुँचते ही है। प्रतिदिन भी लोग आते जाते रहते है। मंदिर ही एक मात्र कसबे का केंद्र बिंदु औरआकर्षण का केंद्र हैं। इस तरह छत्तीसगढ़ में धार्मिक पर्यटन का सबसे बड़ा केन्द्र पुरातन कामाख्या नगरी है जो पहाड़ों से घिरे होने के कारण पहले डोंगरी और अब डोंगरगढ़ के नाम से जाना जाता है। यहां ऊंची चोटी पर विराजित बगलामुखी मां बम्लेश्वरी देवी का मंदिर छत्तीसगढ़ ही नहीं देश भर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है। सन 1964 में खैरागढ़ रियासत के भूतपूर्व नरेश श्री राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने एक ट्रस्ट की स्थापना कर मंदिर का संचालन ट्रस्ट को सौंप दिया था।
मन्दिर मे ऊपर जाने के दो तरीके हैं। 1600 फुट की ऊंचाई में 1100 कदम -कदम चढ़ाई सीढ़ी मार्ग से चढ़ कर या रज्जु मार्ग ( रोपवे ट्रॉली ) से ऊपर जाने के रास्ते हैं। व् पहले पैदल भी दो रास्ते थे ऊपर जाने के सीढ़ी के अलावा एक दुर्गम पहाड़ चट्टान में कूद फांद कर भी जिसके द्वारा भी वर्ष ८० -८१ में हम लोग जैसे तैसे नीचे की मंदिर की पीछे के मार्ग से चडे थे। शायद इसे अब बन्द भी कर दिया गया है। वैसे डोंगर का मतलब पहाड़ है जबकि गढ़ का मतलब किले से है।इतिहासकारों और विद्वानों ने इस क्षेत्र को कल्चूरी काल का पाया है लेकिन अन्य उपलब्ध सामग्री जैसे जैन मूर्तियां भी यहां मिल चुकी हैं,सूक्ष्म मीमांसा करने पर इस क्षेत्र की मूर्ति कला पर गोंड कला का प्रमाण परिलक्षित हुआ है।
रोपवे गाड़ी से नीचे चढ़ते व् उतरते समय दूर- दूर तक का विहंगम दृश्य दिखलाई पड़ता हैं। यह कम से कम पांच मिनट की सवारी है। और इस दौरान हमे मंदिर की तरफ उपर फहराता हुआ ध्वज और त्रिशूल दिखने से तथा नीचे 1000 फीट गहरी खाई की ओर नज़र डालने से एक अनोखी खुशी के साथ साथ भय भी उत्पन्न करता है। मंदिर के नीचे छीरपानी जलाशय है जहां यात्रियों के लिए बोटिंग की व्यवस्था भी है।सीढ़ियों के रास्ते भी मंदिर के परिसर तक ऊपर पहुचने में हमें कठिन और सरळ चढ़ाई रास्ता दोनों हि मिलता हैं । और आप चाहे कितने भी थके हुए क्यू न हो ऊपर मंदिर के प्राँगण में पहुँचते हि शीतल हवा आपकी थकान उतार हि देगी। और एक नई ऊर्जा से आप ओत -प्रोत हो जायेंगे।
रोपवे सोमवार से शनिवार तक सुबह आठ से दोपहर दो और फिर अपरान्ह तीन से शाम पौने सात तक चालू रहता है। रविवार को सुबह सात बजे से रात सात बजे तक चालू रहता है। नवरात्रि के मौके पर चौबीसों घंटे रोपवे की सुविधा रहती है।00 बुजुर्ग यात्रियों के लिए कहारों की भी व्यवस्था पहले थी पर रोपवे हो जाने के बाद कहार कम ही हैं।
किन्तु ऊपर चढ़ाई के पहुँचने के रास्ते में पीने के पानी ,छाया तथा पुरे रास्ते दुकाने सभी तरह की मिलेगी। यात्रियों के लिए रियायती दर पर भोजन की व्यवस्था भी रहती है। ये अच्छी बात है क़ि इस मन्दिर में हर मौसम में आराम के लिहाज़ से बनाये गये विश्रामगृह हैं। ह रास्ते में बन्दरो से आपको सावधान रहने की आवश्यक्ता है। पर्यटक इन्हे खाने पीने की चीज़ देकर इनकी आदत बिगाड़ चुके हैं। और ये पर्स ,थैली आदि छीन कर भी भाग जाते है। क्यूकि इनके शिकार एक बार हमलोग भी हो चुके है।
मन्दिर के आसपास के प्राकृतिक पहाड़ियों वर्णन से परे सुंदर दिखता है। और सीधी रेलवे ट्रैक जो मैदानों पर दूर तक फैला है, मन्दिर के नीचे की और देखने पर एक आश्चर्यजनक परिदृश्य उत्पन्न करता है। मैंने डोंगरगढ़ शहर में मनभावन हरियाली की कमी को महसूस किया हु । नगरवासियो को कम से कम बरगद , पीपल या आम आदि के पेड़ लगा कर इस कमी को जरूर दूर करना चाहिए। ये तो अच्छी ही बात है की
आसपास के पहाड़ों चट्टानों व् झील के नज़ारे अप्रत्याशित कल्पना के लिए कारण प्रदान करते हैं। और बरसात के दिनों में एक अलग ही नज़ारे पैदा करते है। साथ ही दूर तक फैले चट्टानें ,पत्थरो का ढेर भी अनेको कल्पना का केंद्र बनते है। ,,,,,, ये रॉक संरचनाये मुझे तो हमेशा अजीब सा भ्रम प्रदान करते हैं। और जब भी वहा जाता हुँ तो ये कल्पनाओं की दूनिया में मुझे ले जाते है।इसी तरह की दृश्य भानुप्रतापपुर से कांकेर तक की बस मार्ग में भी देखने को मिलता है।
किंवदंती है कि,एक स्थानीय राजा Veersen, निःसंतान था और कहा कि हो जाता है। और अपने शाही पुजारियों के सुझावों से देवताओं को पूजा कर विशेष रूप से शिव पारवती जी की करके मनौती मानी । एक साल के भीतर, रानी वे Madansen नाम एक पुत्र को जन्म दिया। राजा Veersen ने इसे भगवान शिव और पार्वती की एक वरदान मान उनकी सम्मान में मंदिर बनवाया । और मां Bamleshwari देवी का यह मंदिर जाहिर वर्षों में महान आध्यात्मिक महत्व प्राप्त कर ली है।डोंगरगढ़ के बारे में अनेको कहानी लिखी गई है। जो की नेट में उपलब्ध है।अतः इस प र मै ज्यादा लिखना उचित नही समझता। वैसे राजा विक्रमादित्य से लेकर खैरागढ़ रियासत तक के कालपृष्ठों में मां बम्लेश्वरी की महिमा गाथा मिलती है।
डोंगरगढ़ की पहाड़ियों की प्राकृतिकता , कृत्रिम निर्माण कर समाप्त किया जा रहा है. साथ ही पहाड़ी और आसपास की जगह पर कचरो का ढेर फैलता जा रहा है। जिसे की रोकने जान-जागरूकता आवश्यक है। तथा चारो तरफ की पहाड़ी की आकार ,व् खुबसूरती बिगाड़ने में लगे है जिस पर शासन को अंकुश करना चाहिए ,नही तो वो दिन दूर नही रहेगा जबकि सिर्फ चारो और पक्के भवन और गन्दगी ही नज़र आये।
यहा पर अन्य देखने योग्य स्थान निम्न है -
विशाल बुद्ध प्रतिमा डोंगरगढ़ में एक पहाड़ी पर बौद्ध धर्म के लोगों का तीर्थ प्रज्ञागिरी स्थापित है। यहां भगवान बुद्ध की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है। इसके साथ ही माँ रणचण्डी देवी का मंदिर है जिसे टोनहिन
बम्लाई भी कहा जाता है। शहर के इतिहास को जानने वालो के अनुसार के अनुसार इस मदिर में जादू -टोने की जांच की जाती है। वर्तमान में बाहरी लोगो को ज्यादा इस मंदिर के दर्शन को जाते हुए मैंने नही देखा। ड़ोगरगढ़ में हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई सभी सम्प्रदाय की इबादतगाह है।
मंदिर खुलने की स्थितिबम्लाई भी कहा जाता है। शहर के इतिहास को जानने वालो के अनुसार के अनुसार इस मदिर में जादू -टोने की जांच की जाती है। वर्तमान में बाहरी लोगो को ज्यादा इस मंदिर के दर्शन को जाते हुए मैंने नही देखा। ड़ोगरगढ़ में हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई सभी सम्प्रदाय की इबादतगाह है।
कार्यदिवस पर - 04:00-12:00
13:00-22:30
शनिवार और रविवार को - 5:00-10:00
कैसे पहुँचें
डोंगरगढ़ जिला मुख्यालय राजनांदगांव से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और अच्छी तरह से राजनांदगांव से बसों के साथ जुड़ा हुआ है। डोंगरगढ़ भी अच्छी तरह से रेल गाड़ियों के साथ जुड़ा हुआ है। यह नागपुर से 170 किलोमीटर और रायपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर मुंबई-हावड़ा मुख्य लाइन पर है। निकटतम हवाई अड्डा माना (रायपुर) में है।
मौसम यात्रा करने के लिए
डोंगरगढ़ साल भर बाहर से भी आकर दौरा किया जा सकता है।
(चित्र साभार गूगल से व् अन्य मित्रो से )
Nice blog & information!
ReplyDeleteVisit following to know more about -
Vaishno devi temple Height