" बटकी में बासी अउ चुरकी में नून - में गावत हों ददरिया तें हा कान धर के सून "
देवेन्द्र कुमार शर्मा 113 त्रिमूर्तिचोक सुंदरनगर रायपुर छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ के द्वार प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक हर आगंतुक के स्वागत के लिए सदैव खुले रहे हैं । "अतिथि देवो भव" शायद इसी प्रदेश के लिए सही रूप में फिट बैठती है। रामायण व् अन्य धार्मिक ग्रंथो के अनुसार वनवास काल में श्रीराम और पाण्डवों को जहां दण्डकारण्य नें आश्रय दिया था । वहीं देश के विभाजन के पश्चात बंगाल से आये शरणार्थियों को दण्डकारण्य योजना के अंतर्गत आश्रय दिया है।तो निर्वासित तिब्बतियो को सरगुजा जिले के मैनपाट ने आश्रय दिया है। कुछ लोग छत्तीसगढ के इस अतिथि प्रेम को उसकी निर्बलता समझ लेते है। किन्तु समझने वालों को इतना ही स्मरण कर लेना पर्याप्त होगा कि कौरवों को पराजित करने वाली पाण्डवों की विजयवाहिनी को इसी प्रदेश में बब्रुवाहन एवं ताम्रध्वज के रूप में दो दो बार चुनौती का सामना करना पडा था ।और छत्तीसगढ़िया ही उन पर भरी पड़े थे।
"बटकी में बासी अउ चुरकी में नून "
‘ भारत वर्ष में छत्तीसगढ का एरिया धान का कटोरा कहा जाता है। इसके पीछे कारण यह है की धान की जितनी अधिक किस्में छत्तीसगढ में पायी जाती है उतनी और कही भी आपको नही मिलेगा। भारत में पडे 1828 से 1908 तक पडे भीषण अकालों नें ही हमारे छत्तीसगढ़ वासियो को बासी और नून खिलाना सिखाया है। "
बटकी में बासी अउ चुरकी में नून " गीत तो आपने सुना ही होगा न। ,जो की आगे इस तरह है
" बटकी में बासी अउ चुरकी में नून - में हा गावत हावो ददरिया तें हा कान धर के सून "
हम छत्तीसगढ़िया बटकी(कांसे का पात्र) में बासी और चुरकी में नून तो खाते ही है। और यही तो हमारा जीवन है । क्योंकि धान से ही तो हमारे छत्तीसगढ का जीवन है । धान पर आधारित अनेको लोकगीत बने हुए है। अर्थात धान हमारे गीतों में भी रचा-बसा है।
"बतकी में बासी ,दोना में दही ,
पटवारी ल बलादे , नापन जाही। "
हम पके चावल को छोटे पात्र (बटकी) में पानी में डुबो कर ‘बासी’ बनाते हैं और एक हांथ के चुटकी में नमक लेकर दोनों का स्वाद ले के खाते हैं। ‘बासी’ रात में डुबाया भात (पका हुआ चाँवल ) और दिन में पानी में डुबोया भात " बोरे " कहलाता है। ह भाई यही आम ग्रामीण छत्तीसगढ़ियों का प्रिय भोजन है।
और यदि साथ में दही या मठा (माहि )हो। आम के अरक्का (आचार ) ,चटनी हो। घर के बाडी में लगाये कांदा (शकरकन्द )की या खेड़ा की भी भाजी खट्टी सब्जी या लाल फुल वाले अमारी के छोटे पौधे के कोमल-कोमल पत्तों या उसके फूल से बनी खट्टी चटनी ,लाइबरी (धन की लाइ फोड़कर उससे बनी बड़ी ) बिजोरी ,पापड़ और प्याज़ भी साथ में हो तो क्या बात है ?
छत्तीसगढ़ के लोकगीत :
छत्तीसगढ़ के गीत दिल को छु लेती है यहाँ की संस्कृति में गीत एवं नृत्य का बहुत महत्व है। इसीलिये यहाँ के लोगों के आम बोल चल में भी मधुरता है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख और लोकप्रिय गीतों में है - सुआ गीत, ददरिया, करमा, डण्डा, फाग, चनौनी, बाँस गीत, राउत गीत, पंथी गीत आदि ।यहा के लोकगीत में विविधता है, गीत अपने आकार में छोटे और गेय होते है। गीतों का प्राणतत्व है भाव प्रवणता।
ददरिया :-
यह छत्तीसगढ़ का प्रेम गीत है, जिसमे संवाद के माध्यम से दो पक्षो में प्रेमी और प्रेमिका की आपसी नोकझोक है। इस को बड़े उल्लास के साथ धान के खेतों, खलिहानों में काम करते हुए ,डोंगरी व वनों के रास्तो में गा , गा कर भाव विभोर हो जाते है।गाव खेड़ा में अचानक ही एक मर्द अपनी पहली पंक्ति में गीतों में प्रश्न बोलेगा तुरंत ही लड़कियों में से बड़े ही मनोरंजक तरीके से गीतों के माध्यम से प्रति उत्तर सुनाई पड़ेगा।यानि पहेली भी इसके माध्यम से पूछे व् हल की जाती है ।
छिन छिन पानी ,छिन छिन घाम ,,
घिन घिनहा बलाये ,बदन भइस आग.।
( कभी कभी पानी गिरने का पल है ,तो कभी कभी धुप निकलने का ,और ऐसे मौसम में कोई गन्दा है और वो बुलाये तो बदन में आग तो लगना ही है।
अलग डार में फरे लकड़ियाँ ,
जओन ल चाटे तोर डोकरिया
नही बताही तो हिलहि कनिहा
(पहेली का उत्तर है मुनगा ड्रमस्टिक )
इस नोकझोक के बीच ही में कभी कभी बांसुरी की मधुर तान के साथ साथ ही ददरिया गया जाता हैं । और या बांस की मधुर धुन के साथ भी गीत भी सुनाई पड़ते है । जिसे की बास गीत के रूप में भी गाते है। राउत जाती के लोगो को सबसे ज्यादा पसंद की गीत है।यद्यपि कहि- कहि मर्यादाओ की सीमा भी लाँघ जाता है। किन्तु अगले ही चरण में वहीं, इसके साथ ही, मर्यादा का संतुलन भी बनता हुआ नजर आता है।
खड़े मंझनिया निकल पनिया ,
दंगनि बिध डोले तोर कनिहा।
(बीच दोपहरी पानी भरने जा रही हो , तुम्हारी कमर तो बांस के कमानी जैसी डोल रही है )
इसकी हर एक पंक्ति में छत्तीसगढ के अल्हड़ पन की झलक है ,जो की अपनी सादगी और फक्कड़ता ,व्यंग्य को प्रदर्शित करने की एक सहज माध्यम है।
बाम्हन बैरागी ला सुपा में दिए धान ,
ओकर पोथी के पढ़इया ल लेगे भगवान।
यदि यह
प्रियतम की प्रणयातुर होकर प्रियतमा को याद करते हुए सन्नाटे को चीरती हुई पुकार है। तो तत्कालीन परिस्थति को बयां करने का सशक्त माध्यम भी है ?
किसी ने लास्ट वर्ल्ड वॉर के समय को ध्यान में रखते हुए गाया था -
गोला रे गोला ,चांदी के रे गोला
गोला गिरगे सदर में, कांपत है रे चोला ,
गा , दन दनादन गिरत हवे बम के गोला
लागथे रे नाही बांचे अब रे चोला
सुआ गीत :-
" तरी नारी न ना रे ,न न सूआ न ,तरी नारी नाना हो
तारी नारी नाना हो ,
जाने झनि सुनी पावे बीरसिंग राजा हो
झनि सुनी पावे ,बीरसिंग राजा।
खन्ढरी ल हरहि , अउ भूँसा ल भरही गो तरी नारी नाना हो । "
नारी के जीवन की विसंगतिओ को दर्शाने वाला करुण गीत है। विशेष रूप से गोंड जाति की नारियाँ दीपावली के अवसर पर आंगन के बीच में पिंजरे में बंद हुआ सुआ को प्रतीक बनाकर (मिट्टी का हरे रंग का तोता) और एक खम्भे में कलश रखकर उसपर दीपक जलाकर उसके चारो ओर गोलाकार वृत्त में एक लय के साथ ताली बजा कर नाचती गाती घूमती जाती हैं।
जहां नारी सुअना (तोता) की तरह पारिवारिक पिंजरें में बंधी हुई है।और अपनी तुलना पिंजरे में बंद तोते से करती है। इसालिए अगले जन्म में नारी जीवन पुन न मिले ,और तोते की भांति घूमे फिरे ऐसी कामना करती है।इस सुआ गीत में उनकी अपनी व्यथा झलकती है।
तोते को जंगल ,पहाड़ में स्वछन्द उड़ने वाला पवित्र पक्छी माना जाता है। हिन्दू इसमें भगवान का रूप देखते है , इसलिए इसे नही मारते। और महिलाये इसके माध्यम से अपना सन्देश अपने पूर्व प्रेमी या माता पिता और भाई तक भेजना चाहती है। गीत की पंक्तियों में ऐसे ही बात होती है।
दीपावली के आगमन के अवसर पर लोगो के घर - आंगन में जा कर ये हरे रंग की साड़ी पहनी हुई नाचती , गाती है। ग्रामवासी इसके बदले में उन्हें पैसे या अनाज़ भी देते है।
राऊत गीत :- नदी तीर मा बारी बखरी,,,,,,,,,,,,,,,हवओओओओ ,,फेर
खेत में लगाये धानजी ,,,,,,,,,,,,,हवओओओओ ,,,?
मोर गाव के रहवइया हा चल दिस पाकिस्तान जी
दिपावली केअवसर में हि गोवर्धन पूजा के दिन गौ माता और अन्य खेती के काम में आने वाले जानवर को सेवाई (गले में सुन्दर सा कौड़ियो और मोर पंख से सजा कर बना हुआ हार नुमा पटटा) बांध कर ,व् उन्हें कांजी का भोजन कराकर ,फिर उछलते ,कूदते हाथ में लाठी लेकर राऊत जाति के लोगो के द्वारा गाया जाने वाला वीर-रस से युक्त पौरुष प्रधान गीत है जिसमें लाठियो द्वारा युद्ध करते हुए गीत गाया जाता है। इसमें क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी भाग लेते है। इसमें तुरंत ही दोहे बनाए जातें है।दल के ही एक के द्वारा उची आवाज़ में दोहे (हाना ) पढता है
,और फिर सभी गीत को दुहराते हुए उसका उत्तर देते हुए जोर से होiiiiiiiii रे की आवाज़ निकालते हुए गीत को पूरा करते हुए , , ढपली , नगाड़े ,मंजीरा और तुतरी के धुन में , गोलाकार वत्त में धूमते हुए लाठी से युद्ध का अभ्यास भी करते जाते हुए एक दूसरे की लाठी से लाठी टकराते है। इस समय इनके द्वारा पहने गए वस्त्र मोर पंख कौड़िओ से सजे धजे और सर में पगड़ी बंधी हुई रहती है।ये इसी ड्रेस में बाजे गाजे के अपने सभी परिचितों और देवी देवता के द्वार तक जाते है।
इनके गीत के प्रसंग व नाम पौराणिक से लेकर बदलते हुए परिवेश में सामजिक/राजनीतिक विसंगतियों पर भी कटाक्ष करते हुए होते है। गीत के बोल और देसी गाड़ा बाजे की धुन, लोगो के पैरो को थिरकने हेतु मज़बूर कर देते है।
" नदी तीर मा बारी बखरी,,,,,,,,,,,,,,,हव ओओओओ ,,
खेत में लगाये धान जी ,,,,,,,,,,,,,हव ओओओओ ,,,?
मोर गाव के रहवइया ह चल दिस पाकिस्तान जी।"
होओओओ धमर धमर धम और नाच शुरू
(यहा पाकिस्तान का तात्पर्य उसके परिचित का गाव छोड़कर शहर में जा बसना है)
नाती पूत ले घर भर जावै ,जियो लाख बरिस।
धन गोदानी भुइया पावों ,पावो हमर आशीस
इस दोहे के माध्यम से वह आशीस भी दे रहा है की आपका घर नाती -पोते से आबाद रहे ,आप लाखो वर्ष जीते हुए धन गायों ,भूमि सम्पत्तियो से परिपूर्ण भी रहे। हमारा आशिस आपके साथ है। जिसे स्वीकार करो।
होली गीत :-- बसन्तोस्तव के स्वागत में फाल्गुन माह में रंग और अबीर के साथ होली की त्यौहार मनाया जाता है। इस समय आदमी गन्दा और अश्लील बोलने की स्वंतत्रता महसूस करता है.और यह उनके गीतों में भी झलकता है। गीतों के भी बोल द्विअर्थी हो जाते है। जैसे -
छोटे देवरा मोर बारि में लगा दे रे केवरा
कौन जात है आरी बारी
कौन जात है फुलवारी
कौन जात है भाटा बारी
कौन है रे जो मज़ा मारी
छोटे देवरा मोर बारि में लगा दे रे केवरा
(इसमें केवड़ा आरी बारी शब्द संकेतात्मक है ) अगले गीत की बानगी देखिये।
" मोर मुरली बजाये ,मोर बंशी बजाये ,,
छोटे से श्याम कन्हैया
छोट छोट रुखवा कदम के
भुइया लहसे डार
जा तरी बैठे कृष्णा कन्हैया
गला लिए लिपटाय
छोटे से श्याम कन्हैय्या
मुख मुरली बजाये ,मोर बंशी बजाये । "
(यहा पर श्याम कन्हैय्या , मुरली और कदम के पेड़ सांकेतिक है )
भक्ति गीत पंथी गीत करमा गीत के बारे में अगली बार देखिये