- देवेन्द्र कुमार शर्मा ,११३ सुंदरनगर रायपुर
- छत्तीसगढ़ मातृ प्रधान प्रदेश है माता के नाम से पुत्र की पहचान भी इस प्रदेश की विशेषता है।,यहा गाँव -कस्बो से लेकर बड़े शहरो तक देवी माँ की विभिन्न नामो में मंदिर और उनमे स्थापित मुर्तिया मिलेगी। मुख्यतः माँ महामाया ,कंकलिन , काली माता ,शीतला देवी ,स्थानीय गाव ,कसबे के अनुसार नामो में अलग अलग नामो जैसे माँ बम्लेश्वरी ,चंडी ,बिलाई माता ,दंतेश्वरी ,अंगारमोती ,सती,सात बहनिया,धुमा देवी समलेश्वरी ,भवानी माता ज्वाला माता आदि
- और जंगल पहाड़ की घाटीओ बंजर जगह में बंजारी माता आदि आदि के नामो से लोगो के जीवन में जगह बनायीं हुई है। गौरी गणेश की पूजा का विशेष महत्व ,तथा इनके नाम पर तीज -त्यौहार विभिन्न जातियों में आपस की दोस्ती को बदना बद कर रिश्ते दारी में तब्दील करना व् कई पीढ़ीओ तक भी निभाना ,जश गीत ,रामायण को अलग तरह की शैली में पड़ने की लोक परंपरा ,इस छेत्र की विशेषता है।
- बुढ़ी मा
- बुढ़ी मां बुढ़ी रहती है, जिसके बाल सफेद, गाल चिपके हुए एवं कमर झुकी हुई, हाथ में डन्डा लिए हुए रहती है। टुकना में लीम के डाल, बाहरी, लाल कपड़ा पूजा वाला, त्रिशुल रखी रहती है। उसके शरीर में चेचक का चिन्ह रहती है।
छत्तीसगढ़ की माँ (मात् शक्ति और विभिन्न नामो से उनकी पहचान ) :---
- मावली- मावली बकरी रुप में दिखाई देती है।
- फूल मावली- स्त्री के चेहरा एवं पूरा शरीर में फूल दिखाई देती।
- रक्त मावली-मुंह से खून बहती रहती है। एक हाथ में खड़ग, एक हाथ में त्रिशूल एवं बाल बिखरे हुए दिखाई देती है।
- चुरजीव मां-नाखून बड़े एवं हाथ उल्टा पैर टेड़ामेड़ा, बाल बिखरे हुए दांत बाहर निकला हुआ। मुंह भी पीछे थन बहुत लम्बा
- बुढ़ा रक्सा -21 बहिनों से हम बुढ़ा देव जी मानते है वो कमर में डिढौरी, कनधा में टांगा, हाथ में एक डांग और एक चोंगी पकड़ के पीता है। इसका पहचान यही होता है।
- तरुणी माँ - तरुणी मां आंख बंद करके ओ मां जी है जब से उसका नाम लेकर पूजा करते हैं तो हमारा काम सफल होता है। इसके दोनों हाथ आशीर्वाद देते हुए रहते हैं। इस मां के कृपा से कष्ट पड़ने पर जग को तार देती है। इसका जीभ लम्बा होता है।
- मंगला माँ - चैत महिना में मंगला मां का पूजा होता है। मंगला मां का पहचान एक हाथ में त्रिशुल, एक हाथ खड्ग और हाथ भर चुड़ी रहेगा।
- गरत मावली- गरत मावली मां का पेट भरा (गर्भवती) व बड़ा रहता है। जिस औरत पेट में रहकर मर जाता है तो उसका हम आदिवासी गरत मावली मां बनता है।
- दन्तेश्वरी मां - दन्तेश्वरी मां दुर्गा अवतार लिए है। इसका पहचान महिषासुर का किए दिखाया जाता है।
- टिकरा गोसई- इसका पहचान सिर में बाल नही और देवी का रुप दिखना है।
- सात बहिनी -सातों बहिनी देवी का शकल एक ही दिखाई इसके लिए इसे सातों बहिनी माना जाता है।
- फूल सुन्दरी - फूल सुन्दरी मां का पहचान जाता है अति सुन्दर दिखाई देती है। किसी आदमी उसको नजर करता है तो उसका शरीर में बाधा आ जाता है।
- गरब सोल मावली - जिस औरत पेट में आठ महिना रहता है तो उसको गरब सोल मारता है तो वह टेढ़ा होकर उसका प्राण जाता है। तो उसको मनाया जाता है गरब सोल मावली।
- खेंदर - गांव में दुर्घटना आता है तो उसका पहचान आदमी के शरीर में माता दाई आ जाता है। यही इसका पहचान है जान खतरा में भी हो सकता है।
- दूधमाई - दूध गोड़ी माई के आने से शरीर में छोटा-छोटा दाना आ जाता है। उसमें भी आदमी का खतरा होने का रहता है। जब यह बड़ जाता है तो यह बाहर व भीतर भी हो जाता है। इसका पूजा पाठ करने से वह आदमी ठीक हो जाता है।
- सल तलियन - इसको हम समलपुर का समलई है। इसका पहचान इसके पूरे शरीर कांटा-कांटा रहता है।
- चावल पूरने मां = चावर पूरन मां दोनों हाथ में चावर पकड़ा रहता है। उसको चावर पूरन मां माना जाता है।
- हीरा कुडेन मां - हीरा कुडेन मां को माना जाता है। एकदम बालिका रुप में दिखाई देते है। हाथ चुड़ी माथा में सिन्दुर मांग में सिन्दुर मुह में लाली यही हीरा कुडेन मां का पहचान है।
- निरमला देवी - निरमला माता का पहचान सिर कमल का फूल और योग आसन हाथ में गोल-गोल चक्री रहता है। यही इसका पहचान है।
- मुचिन खेंदर - मुचिन खेंदर का पहचान जाता है कि जब आदमी उल्टी-टट्टी करते हुए मर जाता है उसका हर जा बीमार माना जाता है। उसका पहचान आंख बंद करके उल्टी करते हुए बैठ के मर जाता है।
- खप्पर वाली माई - माना जाता है कि नग्न रुप में दिखाई देता है। जीभ लम्बा बड़े-बड़े थन और गला में सिर का माला पहचान होता है। कमर में हाथ को कपड़ा बनाकर पहनते हैं। यही खपर वाली माई का पहचान होता है।
बस्तर के प्रमुख आदिवासी देवी
- केशरपालीन
- मावली
- गोदनामाता
- आमाबलिन
- तेलंगीन
- घाटमुंडीन
- आमाबलिन
- कंकालीन
- सातवाहिन
- लोहडीगुड़ीन
- लोहराजमाता
- दाबागोसीन
- दुलारदई
- घाटमुंडील
- शीतलादई
- हिंगलाजीन
- परदेशीन
- फोदईबुढ़ी
- महिषासुन मर्दिनी
- करनाकोटिन
- कोटगढ़ीन