Saturday, 21 February 2015

तुरतुरिया माता सीता का आश्रय स्थल 

 blogger - DKSHARMA 113,sundarnagar Raipur

 सर्वप्रथम  इस जगह  पर मै  अपने  मित्र श्री नारद चौधरी जी के साथ उनके बुलेट से सिरपुर और बार नयापारा  टूर के दौरान पंहुचा हु। उस समय मुझे याद है की महासमुंद  से सिरपुर  होते हुए कसडोल जाते समय पुल - पुलिए  तेज वर्षा की वजह से बाढ़  आ गए थे।और  हम दोनों को सिरपुर  के पुराने विश्रामगृह  में  रात व्यतीत  करना पड़ा  था। और सुबेरे मौसम खुलने पर जैसे तैसे  तुरतुरिआ  देखते हुए कसडोल पहुंचे थे। वैसे वे  20 ,25  km  दूर के  ही रहने वाले है ,किन्तु इस स्थल में  पहली बार मेरे साथ ही पहुंचे थे। बाद में  मुझे इस स्थल में अनेको बार जाने का मौका मिला है।  आज छत्तीसगढ़ का नाम  पुरातात्विक सम्पदा  से भरपूर  सिरपुर आदि के कारण  भारत  में ही नही बल्कि  विश्व मे भी अपनी एक अलग   स्थान  बनाता  जा  रहा  है।
  वैसे  तुरतुरिया रायपुर जिलासे 84 किमी एवं बलौदाबाजार जिला से 29 किमी दूर कसडोल तहसील से १२ किमी दूर प०ह्०न्० ४ बोरसी से ५किमी दूर और् सिरपुर से आने पर   23 किमी की दूरी पर   घोर वन प्रदेश के अंतर्गत  स्थित है। तब तो  मार्ग   जंगल वाले थे।  अब  पक्के मार्ग बन चुके है।

  यह   स्थान आसपास के छेत्र  में   सुरसुरी गंगा के नाम से भी प्रसिद्ध है । यह स्थल प्राकृतिक दृश्यो से भरा हुआ एक मनोरम स्थान है जो कि  चारो और से जंगल पहाडियो से घिरा हुआ है। इसके समीप ही छत्तीसगढ़  का प्रसिद्ध अभ्यारण बारनवापारा   भी स्थित है। यहा  पर  अनेको  प्रकार के  वन प्राणी  ,फ़्लोरा व् फौना मिलते है।

  तुरतुरिया बहरिया नामक गांव के समीप बलभद्री नाले पर स्थित है। एक बार  जब हम लोग जीप से सुबेरे के  समय यह पहुंचे थे ,तो नाले के आसपास  गौर ,हिरण ,भालू आदि  वन प्राणी  देखने को मिले थे।मैंने एक विशालकाय मादा भालू को अपने दो बच्चो को पीठ में चढ़ा कर रास्ता पर करते भी देखा है। और वापिसी के दौरान एक नीलगाय ने सड़क के किनारे लगे पत्थर के दीवारो को छलांग लगा कर हमारे सामने ही दौड़ते देखा है। वो हमारे मोटर साइकिल से टकराते टकराते बचा था।   किवदंती  है कि त्रेतायुग मे महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यही पर था और यही जगह  लवकुश की भी जन्मस्थली थी।

  इस स्थल का नाम तुरतुरिया होने का कारण  शायद यह है कि बलभद्री नाले का जलप्रवाह चट्टानो के माध्यम से होकर निकलता है तो उसमे से उठने वाले बुलबुलो के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण उसे तुरतुरिया नाम दिया गया है।

 इसका इक जलप्रवाह एक लम्बी संकरी सुरंग से होता हुआ आगे जाकर एक जलकुंड मे गिरता है जिसका निर्माण प्राचीन ईटों से हुआ है। जिस स्थान पर कुंड मे यह जल गिरता है वहां पर एक गोमुख बना दिया गया है जिसके कारण जल उसके मुख से गिरता हुआ दृष्टिगोचर होता है। गोमुख के दोनो ओर दो प्राचीन पाषाण   प्रतिमाए किसी वीर की स्मृती  में स्थापित है जिसमे  कि इक  हाथ में तलवार लेकर  सिंह  को   मारते हुए हुए खड़ा है  ,और दूसरी मूर्ति जानवर से लड़ाई करता हुआ  उसकी गर्दन को मरोढ़ता  हुआ  है। यही पर  विष्णु जी की भी दो प्राचीन  मूर्तीया  है।   जिनमे से एक प्रतिमा खडी हुई स्थिति मे है तथा दूसरी प्रतिमा मे विष्णुजी को शेषनाग पर बैठे हुए दिखाया गया है।  इस स्थान पर शिवलिंग भी खुदाई  आदि में भी  मिलते रहते  है..  इसके अतिरिक्त प्राचीन पाषाण स्तंभ भी काफी मात्रा मे बिखरे दिखते  है जिनमे कलात्मक खुदाई किया गया है। जिससे लगता है की यह स्थल पूर्व में विकसित रहा होगा।  इसके अतिरिक्त कुछ प्राचीन  शिलालेख और  कुछ प्राचीन बुध्द की प्रतिमाए भी यहां स्थापित है।  यह  स्थल  बौध्द, वैष्णव तथा शैव धर्म से संबंधित  संप्रदायो की कभी  मिलीजुली संस्कृति रही होगी ऐसा प्रतीत होता है । समीप  ही नारायणपुर , शिवरीनारायण वैष्णव व्  शैव  धर्म के  धार्मिक स्थल  व् सिरपुर  बौध्द संस्कृति का भी  केन्द्र रहा होगा। आध्यात्मिक व्  पुरातात्विक  ये  स्थल इस बात को बल भी देती है।  ऎसा माना जाता है कि यहां कभी महिला  बौध्द विहार भी  थे जिनमे बौध्द भिक्षुणियो का निवास था। समीप ही  सिरपुर के  होने के कारण यह माना जा सकता है की  कि यह स्थल कभी बौध्द संस्कृति का भी  केन्द्र रहा होगा। विशेषज्ञों ने  ऎसा अनुमान लगाया गया है कि यहां से प्राप्त प्रतिमाओ का समय 8-9 वी शताब्दी है। आज भी यहां स्त्री पुजारिनो की नियुक्ति होती है जो कि एक प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है।  यहां पूष माह मे तीन दिवसीय मेला लगता है जिसमे  बडी संख्या मे आसपास के ग्रामवासी आते है। धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल होने के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी यह स्थल पर्यटको को अपनी ओर खींचता रहता  है। पिकनिक  मनाने भी लोग आते रहते  है।
माता सीता का आश्रय स्थल

 इस जगह  के विषय में कहा जाता है कि लंका विजय से वापस आने के बाद   श्रीराम द्वारा  माता सीता  को त्याग दिये जाने पर माता सीता  को   इसी स्थान पर वाल्मीकि  मुनि जी ने अपने आश्रम में  उन्हें आश्रय दिया  था। और उनके पुत्र  लव-कुश का भी जन्म यहीं पर हुआ   माना  जाता है ।  महर्षि वाल्मीकि को रामायण के रचियता भी माना जाता है. और इस लिए  यहहिन्दुओं की अपार श्रृद्धा व भावनाओं का केन्द्र भी माना जा सकता  है



पुरातात्विक महत्त्व
सन 1914 ई. में सर्वप्रथम  तत्कालीन अंग्रेज़ कमिश्नर एच.एम. लारी ने इस स्थल के इतिहास  को समझ  यहाँ पर पुरातात्विक खुदाई करवाई, जिसमें अनेक मंदिर और सदियों पुरानी मूर्तियाँ प्राप्त हुयी थीं। यहाँ वर्तमान में  पर कई मंदिर बनते जा रहे  है। नज़दीक ही  एक धर्मशाला भी  बना हुआ है।
मातागढ़' नामक मंदिर
यहँ पर 'मातागढ़' नामक एक अन्य प्रमुख मंदिर है, जहाँ पर महाकाली विराजमान हैं। नदी के दूसरी तरफ़ एक ऊँची पहाडी है। इस मंदिर पर जाने के लिए पगडण्डी के साथ सीड़ियाँ भी बनी हुयी हैं।मातागढ़' नामक एक अन्य प्रमुख मंदिर है जहाँ पर महाकाली जी  स्थापित  हैं। मातागढ़ में कभी बलि प्रथा होने के कारण बंदरों की बलि चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब पिछले कई सालों यह बलि प्रथा बंद कर दी गई है। अब केवल सात्विक प्रसाद ही चढ़ाया जाता है। लोक  मान्यता है कि मातागढ़ में एक स्थान पर वाल्मीकि आश्रम तथा आश्रम जाने के मार्ग में ही  जानकी कुटिया है,जहा ही  सीता जी रहती थी।
मैंने पाया की वर्तमान में यह पर मंदिर के आलावा अन्य सामान्य सुविधा  खाने -पीने की वस्तुये   मेला के समय को छोड़कर अनुप्लब्धत  ही रहता है। अतः आप आते है तो पूरी व्यस्था के साथ ही आवे। किन्तु यहाँ  पर आवै  तो गंदगी न फैलावे यह ध्यान में रखे  ।
 (चित्र  गूगल से साभार  व् अन्य ब्लॉगर के सहयोग से  )


  कैलाश गुफा जशपुर जिला की यात्रा 

    Devendra Kumar Sharma
113 ,sundarnagar ,Raipur ,chattisgadh
मै वर्ष २०१३ में गर्मी के मौसम  में रायपुर से  शासकीय कार्यवश अम्बिकापुर नगर गया था।  मुझे घूमने का शौक है ,मैंने वहा  पर  लोगो से आसपास के घूमने की जगह की जानकारी ली। लोगो ने मैनपाट ,सामरीपाट  कैलाशगुफा आदि जगह की जानकारी दी।श्री नेताम जी मेरे मित्र है , जो की वर्तमान में पंचायत ट्रेनिंग सेंटर में फेकल्टी मेंबर के रूप में कार्यरत है ने मुझे अपने साथ अगले दिन  कैलाश गुफा देखने  चलने को  आग्रह किया। जगह की खासियत पूछने पर इस जगह के बारे में उन्होंने बताया कि   अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किमी. पर स्थित सामरबार नामक स्थान है,



 जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है। इसे परम पूज्य संत रामेश्वर गहिरा गुरू जी जिनका उस छेत्र में काफी सम्मान था,  नें पहाडी चटटानो को तराश कर निर्मित करवाया है। यहाँ  महाशिवरात्रि पर विशाल मेंला लगता है। इसके दर्शनीय स्थल गुफा निर्मित शिव पार्वती मंदिरबाघ माडाबधद्र्त बीरयज्ञ मंड्पजल प्रपातगुरूकुल संस्कृत विद्यालयगहिरा गुरू आश्रम है।
 इस जगह का विवरण जानने  के लिए लगा सुचना फलक  :-

तब मुझे भी ख्याल आया की इस जगह की तारीफ जब मै रायगढ़ में  पदस्थ था तो भी अनेको   मित्रो ने की  , किन्तु मै यहां  आ  नही पाया था।  दूसरे दिन  जीप से श्री नेताम और उनके  एक और मित्र के साथ चल पड़े ,रास्ते काफी सुहावने थे। कहि कहि तेज़ हवा के झोको से ख्याल आता की ये जगह पवन चक्की या इनसे ऊर्जा पैदा कर उसका उपयोग किया जा सकता है। कुछ जगह छत्तीसगढ़ शासन की पहल भी इस दिशा में दिखाई दी।  


 वैसे    जशपुर  जिला के  ब्लॉक मुख्यालय  बागीचा   से यह स्थान   लगभग 120 किलोमीटर दूर है। यह स्थान जशपुर जिले को पर्यटन के क्षेत्र में अलग पहचान देने वाला प्रमुख दर्षनीय स्थल है। कैलाश गुफा को  पहाड़ में चट्टानों को  मात्र 27 दिनों में खुदाई और  काटने से बनाया गया है। समीपस्थ ग्राम सामरबार  में  संस्कृत महाविद्यालय  है। यह हमारे देश में   दूसरा संस्कृत महाविद्यालय   है।  जो की श्री रामेश्वर गहिरा गुरू जी की प्रेरणा से  निर्मित है।  





बगीचा बतौली मुख्य सड़क के बाद कैलाश गुफा पहुंचने वाली 14 कि.मी. की उबड़ खाबड़ सड़क पर जगह जगह नुकीले पत्थर और गड्ढो के चलते हमे  यहॉं  पहुंचने में दिक्कते तो हो रही थी ,पता नही इस सड़क को क्यों नही बनाया गया है।  बगीचा बतौली की पक्की सड़क छोड़ने के बाद ग्राम मैनी से गुफा पहुंचने के लिए कच्ची सड़क पर पत्थरों की भरमार और बड़े बड़े गड्ढों के चलते कैलाश गुफा पहुंचने से पहले ही हमारा  मन खिन्न सा  हो गया ।जशपुर जिले को पर्यटन के क्षेत्र में अलग पहचान देने वाला यह  स्थल कैलाश गुफा तक पहुंचने वाली सड़क की बदहाली  के चलते ही शायद गर्मी के दिनों में भी यह स्थान सुनसान ही था।  महज 14 कि.मी.की दूरी को दो घंटो में तय करने से बाहर का सैलानी इधर दूसरी बार आने का नाम नहीं लेते  है। बीच रास्ते में वाहन खराब होने के बाद दूर दूर तक गाव नही होने से  मदद मिलने की उम्मीद भी  नहीं रहती  है। 

अंबिकापुर  से यहॉं  पहुंचे मेरे साथ के लोगो  ने बताया कि इस धार्मिक और रमणीय स्थल पर वे एक दशक पहले आए थे।उस समय यहॉं  की कच्ची सड़क की हालत आज की तुलना में  काफी अच्छी थी। किन्तु अभी तो जीप को भी सम्हाल कर चलाना पड़  रहा था। मुरम जैसी लाल मिटटी वाली भूमि आलू ,टमाटर की खेती के लिए प्रसिद्ध  है। 
\किन्तु  कैलाश गुफा के समीप पहुचने पर चारो ओर ऊंची पहाड़ियां तथा दूर दूर तक फैली हरियाली के साथ  झर झर  झरते  झरनों का रमणीय दृष्य को देखते ही हमारी  सारी  थकान उतर गयी  यहाँ पर सुन्दर   झरने लगभग ४० फ़ीट ऊपर से गिरते और उची उची पहाड़ो के बीच  घने दरख्तो के बीच से बहते हुए  और केले ,आम  के  काफी तादाद में लगे  वृक्ष यहाँ की  सुंदरता और आकर्षण बढ़ा रहे हैं। कैलाश गुफा में  पहाड़ों  को काटकर बनाये गए गुफा वाले कमरो जिसके बाहर की दिवार में टपकते पानी की बुँदे और इसमें  स्थापित प्राचीन शिव मंदिर का आकर्षण के चलते भी यह पर्यटन स्थल अब  दूर दूर तक अपनी पहचान बना चुका है। बताते है की यहां  पर अनेको दुर्लभ जड़ी बूटी पाई जाती है।  यहॉं  पर सैलानियों की सुविधा पर  काफी ध्यान  देने की आवश्यकता है। जगह के सुनसान होने के कारण कैलाश गुफा आश्रम के पुजारी का कहना था कि इस स्थल पर आवागमन के साधन का अभाव तथा सड़कों की दुर्दषा के चलते सैलानियों की भीड़ पर विपरीत असर पड़ा है। कैलाशगुफा के आस पास रेस्ट हाउस बना कर इस स्थल को विकसित किया जा सकता है। शासन को इस दिशा  में सार्थक प्रयास करने  चाहिए। 



 कैलाश गुफा का प्रमुख   प्राचीन शिव मंदिर के आसपास काले बन्दरों का उत्पात भी बढ़ गया है। इस रमणीय स्थल पर प्रमुख आकर्षण का केन्द्र के रूप में काफी उंचाई से गिरने वाला झरना को माना जाता था। इन दिनों लगभग 40 फीट की ऊँचाई से गिरने वाली पानी की मोटी धारा भी अब लुप्त होकर यहॉं  पानी का पतला झरना ही रह गया है। किन्तु यहॉं पर पत्थरों में काई और कचरे की भरमार रहने से कोई भी सैलानी यहॉं  नहाने का आनंद नहीं ले पाता है। मेरे ड्राइवर ने भी  ट्यूबवैल में नहाना पसंद किया। ,वहां के स्थानीय लोगो से  हमने केले और आम खरीद कर खाए ,वहाँ के आम काफी मीठे है  और किसी भी प्रकार के अन्य नास्ते सामग्री  वहां  उपलब्ध नही थे।  हम लोगो ने  कैलाश गुफा में व्यस्थाके आभाव के  चलते   जल्द से जल्द अँधेरा होने से पहले  वापस लौटने में ही अपनी भलाई समझे । क्युकी यहाँ  पर जंगली जानवर भी आते रहते है। 
       Devendra Kumar Sharma
113 ,sundarnagar ,Raipur ,chattisgadh